Thursday 16 February 2012

गुरु जी के आँसू

हम यु बेपरवाह हो गए की देख ही ना पाए की कमरे में प्राचार्य जी चुपके चुपके सिसक रही थी !

शिष्या  :-क्या हुआ प्राचार्य जी ??

प्राचार्य :-कोशिश बहुत की मैंने की बदल दू हालात अपने अनुसार लेकिन असफल रही लेकिन दुःख इस बात का नहीं मै असफल रही लेकिन दुखी हू की जिन्हें पढ़ा लिखा कर अफसर बनाया वो सब तो अपने ही सुख को सोचने लगे और महल का स्वपन देखने लगे, लेकिन मेरे सुख (चारों तरफ खुशहाली ) कोई नहीं सोचता.

शिष्या :-तो क्या आप हार गए ??

प्राचार्य:-हां मान सकती हो क्योकि मै अपने बच्चे को भूखा नहीं देख सकती इसीलिए इस माहौल में ढल गयी हू सह नहीं सकती इसीलिए कोने मे चुप से सिसकती हू....!!!

शिष्या:- तो क्या मै कोशिश करू ??

प्राचार्य :-हार जाओगी !

शिष्या:- कोई बात नहीं, करने दो एक कोशिश...आपके चहरे की एक मुस्कान की चाहत मंजिल को छु लेने को हमेसा आतुर करेगी 

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