Sunday 19 February 2012

खून है या पानी देशभक्ति कविता (2)

अब भी खून नहीं खोला तो खून नहीं वो पानी है
श्रेणिक जैन की एक देशभक्ति कविता आपके सामने रख रहा हू जो कुछ मेरी और कुछ कॉपी की गयी है..........

कोई कह दे कब काशी ने कावा की दीवारे तोड़ी ,
हमने कब मक्का में जाके मस्जिद या मीनारे तोड़ी,
तुम खूब कुरान पढ़ो किन्तु हमें वेद भी पढाने दो,
चंदा से बैर नहीं हमे लेकिन सूरज को अर्ग चढाने दो
हम अपनी धर्मसुरक्षा में सूरज की आग नहीं लेगे
गंगा को यदि पड़ी जरुरत लहू की नदी बहा देगे
हम सागर है पर मत भूलो सूरज के से तपते है
बर्फीली परतों में भी लपटों वाले वंश पनपते है
तो साफ़ बता दू अब हिंसक हर लहर मोड दी जायेगी
क्रांतिग्रन्थ में एक कहानी और जोड़ दी जायेगी
जो उपवन पर घात करे वो शाख तोड़ दी जायेगी
जन्मभूमि पर उठी हुई हर आख फोड जी जायेगी

उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा
श्रेणिक जैन 

No comments:

Post a Comment