Monday 25 June 2012

चिंता और क्रोध

विचार :-
मेरे विचार से इंसान के सबसे बड़े २ ही शत्रु होते है और वो है चिंता और क्रोध
क्योकि कुछ इंसानों के साथ तो ये निश्चित सा ही हो जाता है की उनका कार्य शुरू तो चिंता से होता है और उसका एक दुखद अंत क्रोध पर हो जाता है !
श्रेणिक जैन आप सब से इतना ही कहना चाहता है की चिंता हमेसा दिमाग को कमजोर बनाती है और क्रोध से चिंता तो बढती ही है और साथ ही साथ रिश्ता भी कमजोर पड़ने लगता है ! इंसान को जहाँ तक हो सके इन दोनों का ही त्याग करना चाहिए क्योकि इनसे कार्य बनने की बजाये सिर्फ बिगड ही सकते है और कुछ नहीं !


श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

Sunday 24 June 2012

असफलता और उसकी शिक्षा

विचार :-
मेरे विचार से सफलता और असफलता जीवन का अभिन्न अंग है आप कभी सफलता को प्राप्त करते है और कभी असफलता को ! और ये जीवन में चलता ही रहेगा अगर आप कुछ काम करेगे तो आपको उसमे सफलता या असफलता मिलना स्वाभाविक ही है !
लेकिन श्रेणिक जैन आपसे सिर्फ ये कहना चाहता है की सफलता मिले तब तो ठीक ही होता है लेकिन जब आपको असफलता मिले तो उसको कही पीछे छोड देना चाहिए लेकिन उससे मिले अनुभव को कभी नहीं त्यागना चाहिए क्योकि यही अनुभव आपको जीवन भर तक काम आएगा और आपको असफलता के पथ पर जाने से रोकेगा !

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

Friday 22 June 2012

वक्त और प्रेम

विचार :-
आज कल पता नहीं लोग इतना क्यों व्यस्त हो गए है पूछने पर ना जाने क्या क्या तर्क वितर्क मिलते है बहुत से लोगो के तर्क ये रहता है की आज की जिंदगी में गति आ गयी है तो हमें भी वक्त से तेज चलना है अगर हम तेज नहीं चले तो दुनिया आगे निकल जायेगी !
कुछ हद तक ये बात सच है लेकिन मेरा पूछना ये है की क्या इस Super-fast जिंदगी में क्या आप अपने अपनों के लिए कुछ वक्त भी नहीं निकाल सकते है ?
क्या आप उन्हें वो प्यार नहीं दे सकते जिसके लिए वो बरसो से आपकी प्रतीक्षा कर रहे है ?
मुझे नहीं लगता की आपके पास इतना भी वक्त नहीं........!!!!!
श्रेणिक जैन का मानना सिर्फ ये है की दूर रहने वाले सगे भाई से प्रेम करने वाला पडौसी ज्यादा अपना हो जाता है ! अभी भी वक्त है कही ऐसा ना हो बहुत देर हो जाए , गाडी तो स्टेशन से निकल जाए और आप स्टेशन पर ही खड़े अपने वक्त का रोना रोते रह जाये !



श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा


Tuesday 19 June 2012

सिफारिश


मुझे ऐसा लगता है..............बताना जरुर की आप मेरी बात से सहमत है या नहीं ?
की किसी की सिफारिश से स्वर्ग जाने की बजाये नरक जाना ज्यादा अच्छा है !

Thursday 14 June 2012

भ्रष्टाचार और अन्य अपराधों की जड़

विचार:-
बहुत से लोगो को मैंने कहते हुवे सुना है की वो अक्सर कहते है की अपने धर्म और धंधे को हमेसा अलग रहना चाहिए लेकिन मेरा ये मानना है की ऐसा हम कभी भी नहीं कर सकते है और ऐसा होना किसी भी तरह से संभव भी नहीं है !
मेरे विचार से तो धंधे में धर्म का समावेश होना चाहिए लेकिन हमने अपने धंधे से धर्म को निकाल के बाहर कर दिया है यही कारण है की धर्म-प्राण देश में भी रिश्वत खोरी, तस्करी और मिलावट जोरो पर है !
और इसके साथ साथ हमारे धर्म में धंधे का समावेश नहीं होना चाहिए लेकिन दुर्भाग्य से आजकल ऐसा भी हो गया है जिससे भ्रष्टाचार जैसे तत्व निकल कर सामने आने लगे है !
आगे आप खुद समझदार है की क्या करने से आप कल्याण के पथ पर बढ़ सकते है !


श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

Tuesday 12 June 2012

भारतीय संस्कृति की महत्ता और जीने का सलीका

विचार :-
भारतीय संस्कृति हमेसा से ही कीचड़ में कमल की तरह रही है और वो भी हमेसा खिली ही है जिसने हमेसा से ही सत्य, अहिंसा, अचौर्य (चोरी न करना ), ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह की शिक्षा दी है !
श्रेणिक जैन का तो यही विचार है की जिस प्रकार कीचड़ में कीड़े की तरह जीने वाला अज्ञानी और कमल की तरह खिलने वाला ज्ञानी होता है ठीक उसी प्रकार अपनी भारतीय संस्कृति जिसे बड़े बड़े ज्ञानियों ने अपने ज्ञान से सिचा है भी कीचड़ में हमेसा कमल की तरह खिली है और खिलती रहेगी !
कीचड़ में कीड़े की तरह रहना दुर्भाग्य है और कमल की तरह रहना सौभाग्य है इसीलिए हमेसा कमल की तरह रहे ना की कीड़े की तरह !

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

Saturday 9 June 2012

चाहत इंसान की या यु कहे मेरी

विचार :-


एक सपना चाहिए पूरा करने को ..!!
एक आसमा चाहिए उड़ान भरने को..
एक आसरा चाहिए सर रख सोने को..
एक दोस्त चाहिए हँसने और हँसाने को ..
एक ममता चाहिए दर्द कंधो पर उठाने को..
एक मंजिल चाहिए किसी अपने के लिए हार जाने को ..
एक रौशनी चाहिए जिंदगी का अन्धकार भागने को..
एक विश्वास चाहिए सबसे रिश्ते निभाने को ..
एक इंसान चाहिए जिंदगी से इंसानियत निभाने को..
एक मायूसी चाहिए मंद मंद मुस्कुराने को..
एक धुन चाहिए अकेले में गुनगुनाने को..
एक महक चाहिए वास्तव में भिनभिनाने को..
एक मौत चाहिए सब कुछ भुलाने को..


श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

फोटो (5)

फोटो (5)
हमारा प्यारा पंच नमस्कार महामंत्र


Friday 8 June 2012

संयम की चुनौती मुक्तक (20)

संयम की चुनौती मुक्तक (20)

जब संयम चुनौती देता है, फिर कर्म घूमने लगते है,
संयमी  मानव  के  फिर  चरण - घूमने  लगते  है !
विपदाए  होती  है  रुकसत  बादल  उड़ने  लगते  है,
धर्मात्मा के संग देव क्या, चाँद तारे भी चलने लगते है !!


श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

Thursday 7 June 2012

चाहत और दृढ विश्वास

विचार :-
मेरे विचार से चाहत और दृढ विश्वास मे बहुत फर्क है
क्योकि हमारी चाहते या ऐसा कहे की हमारी इच्छाएँ तो बदली जा सकती है और बदलती भी रहती ही है लेकिन द्रढता और विश्वास अटल होता है और होना भी चाहिए क्योकि अगर वो अटल नहीं है तो मनुष्य अपने लक्ष्य को नहीं पा सकता है !
दबाब मे चाहत कमजोर पड़ जाती है जबकि विश्वास और मजबूत होता जाता है
लेकिन इसके लिए यह जरुरी है की हमारे नैतिक मूल्य अच्छे हो, क्योकि जब तक हमारे नातिक मूल्य अच्छे और सच्चे नहीं होगे तब तक हमारा दृढ विश्वास मूल्यवान नहीं होगा क्योकि यही दृढ विश्वास हमे समाज में इतना ऊपर उठा भी सकता है की हमारे कद के सामने सबका कद छोटा हो जाये और इतना नीचे भी गिरा सकता है की हम कभी अपनी नज़रों में भी उठ नहीं पायेगे !


श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

भक्त से भगवान मुक्तक (19)

भक्त से भगवान मुक्तक (19)

लहर  समुन्दर  को  बदल  देती  है,
डगर  मंजिल  को  मिला  देती  है !
पूजा भक्ति की कसोटी है मेरे भाई
भावना भक्त से भगवान बना देती है !!


श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

Monday 4 June 2012

धर्म खुराक आत्मा की

विचार :-
लोग अक्सर पूछते है की धर्म क्या है आखिर धर्म क्यों करे ?
तो मेरा उन लोगो से एक जवाब यही होता है की अगर संसार सागर से पार उतरना है और अपने इस भव में भी सुख शान्ति से जीना है तो धर्म आवश्यक है !
अगर आपको इतना भी समझ ना आये तो सिर्फ इतना समझ लीजिए की धर्म आत्मा की खुराक है ! जैसे भोजन और पानी के बिना शरीर टिक नहीं सकता ठीक उसी प्रकार धर्म के बिना आत्मा नहीं टिकती !
इसीलिए श्रेणिक जैन कहना चाहता है की धर्म को कभी नहीं छोडना चाहिए अपनी जिंदगी भर !

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

Saturday 2 June 2012

दूसरों का सहारा

विचार :-
मेरे और मेरे एक दोस्त में हमेसा ये बहस रहती है की दूसरों का सहारा कहा तक उचित है !
मेरा कहना हमेसा ये रहता है की हमें दूसरों का सहारा कम से कम लेना चाहिए जबकि उसका ये कहना होता है की वो दूसरों के सहारे चलता रहेगा और दूसरों के सहारे चलते चलते आज वो अपने ही पैरों की ताकत कम कर बैठा है !
श्रेणिक जैन हमेसा एक बात ही कहना चाहता है दूसरों के सहारे चलना वहाँ तक उचित है जहाँ तक आप अपने पैरों की ताकत ना खो दे ! क्योकि केवल अपने ही सहारे चलने के लिए आपका जीवन कम पड़ जायेगा और बहुत से काम के हमें दूसरों के सहारे चलने की जरुरत पड़ती ही रहती है !

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

Friday 1 June 2012

सबसे बड़ा दान

विचार :-
मैं आज आप लोगो से एक प्रशन पूछना चाहता हू की सबसे बड़ा दान कौन सा है
आहारदान-----ना
औषधदान-----ना
ज्ञानदान ------ना
अभयदान -----ना
तो फिर कौन सा दान सबसे बड़ा है मेरे विचार से तो सबसे बड़ा दान एक ही है वो है खुशीदान क्योकि अगर ये सब दान देने के बाद भी अगर इंसान ( देने वाले और लेने वाले ) को खुशी ना हो तो इन सब दानो का कोई महत्व नहीं है लेकिन दान देने के बाद अगर वो खुश हो गए तो हमारा वो दान सार्थक हो जायेगा !

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा......