Wednesday 7 March 2012

होली में खुशी या गम

विचार :-

क्या आपको नहीं लगता की आज भगवान को अपनी छुद्र(छोटी और गन्दी) राजनीति का जरिया बना कर धर्म के तथाकथित संरक्षक बन बैठे एक नहीं अनेको हिरण्यकश्यप सारे देश में घूम-घूमकर रंगों की होली की जगह खून की होली खेल रहे हैं ।

अपने विश्वास को संविधान , कानून , राष्ट्र और जनता से ऊपर और अपने किये कार्यों को ही देश का कानून समझने वाले ये हिरण्यकश्यप देश की जनता की एकता , सद्भावना, परस्पर विश्वास और लोकतांत्रिक मर्यादाओं पर अपनी कूटनीति वाली चालों से हर वक्त हर छन आघात कर रहे हैं । अपनी बहन होलिका रूपी साम्प्रदायिकता के माध्यम से कई निर्दोष और मासूमों को अपना शिकार बना रहे हैं

जो व्यक्ति या संगठन इनके विचारों से असहमति रखते हैं उन्हें सबक सिखाना,डराना,धमकाना ,मार-पीट करना,सभा बिगाड़ना,पुतला जलाना और अन्त में दमन कर कर के हत्या तक कर देना इन हिरण्यकश्यपों की दृष्टि में पवित्र धार्मिक और राष्ट्रीय कर्तव्य है ।

धर्म और भगवान के ठेकेदार बने स्वयंभू हिरण्यकश्यपों और साम्प्रदायिकता रूपी होलिका रुपी समाज की मर्यादा का हर वक्त बलात्कार तक करने से पीछे नहीं हट रहे क्या ये होलिका का सच्चा मर्म नहीं है

जब इतने बड़े बड़े हिरण्यकश्यप तक इस दुनिया में घूम रहे है तो कहा तक होलिका का दहन न्यायसंगत है ? खुद सोचिये..........!!!!!!!!

श्रेणिक जैन

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