Monday 12 March 2012

इंसानी भेडिये कैसे कैसे

आज जब मैं ये रचना पढ़ रहा था तो जैसे आँख से आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे
आप भी पढ़े और खुद सोचे की कहा है आज हम कैसे भेडिये बन गए ये कविता मेरी नहीं एक कॉपी की गयी रचना है !
कृपा कर पसंद करे तो कमेन्ट करे और फोल्लो भी


शीर्षक ---शेर को चूमती हुई लड़की का फोटो अखबार में देखकर

भूमिका
उस का प्रेम ही तो है
जो हौंसला देता है
शेर का भी चुबन ले लेने के लिये
नहीं तो कितनी सी देर लगती है
आत्मीय मर्द को भी
आदमखोर हो जाने में

इंसानी भेडियो की कहानी
आए दिन
छपते हैं समाचार
कि दहेज लौलुपों ने जला दी जिन्दा बहू
कि सगे चाचा ने खींच दिये
किसी मासूम बच्ची के ललाट पर,
अपनी हवस के रींगटे
कि कोई आदमी
टॉफी का लालच देकर ले गया
एक मासूम बच्चे को
इंसानी माँस का स्वाद चखने के लिये।

मनुष्य के वेश में घूमते
भेड़ियों से बचने के लिये
बहुत ज़रूरी हो जाता है शेर का अपनापन
शेर पिंजरे में हो तो भी क्या हुआ
भेड़ियों और गीदड़ों को भगाने के लिये तो
पर्याप्त होती है उसकी एक दहाड़ ही।
मनुष्य हो या जानवर
जीवन तो प्रेम की ही करता है तलाश
इंसान की सच्ची खुशी को प्रेम कहते है
ना की इंसान की गन्दी भूख और हवस को......

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