Friday 9 March 2012

मांस निर्यात पर रोक

विचार :-
मूक पशुओ की वेदना ना सुनने वाले ओ पापी मनुष्य आज इस धर्म प्रधान देश में अपनी जीभ की स्वाद के साथ साथ विदेशो में भी मॉस के निर्यात को करके ना सिर्फ अपने आत्म कल्याण के पथ से भटक रहा है बल्कि अनगिनत पाप का भागी भी बन रहा है !
हमारी हिंसा का जाल अब इतना घिनोना और खून से सना हुवा हो गया है की हम अपने पालतू कृषि-पशुओं को भी काटकर खाने लगे है ! आज हमारे ही अपने देश में जो कभी महावीर, बुद्ध, गाँधी, विनोबा, विवेकानंद और राम कृष्ण जैसे महापुरषो की जन्मभूमि रहा है ऐसे देश में उस पशुधन को बिना संकोच कसाई को सौप रहे है जो पशुधन वर्षों से हमारा भरण पोषण कर रहा है !
माँसाहार और मॉस निर्यात से जुड़े कुछ तथ्य:-
१.देश की आजादी के समय देश में कुल 300 क़त्लखाने थे जो आज बढ़कर 3000 से भी आगे बढ़ गए !
२.अकेले देवनार (मुंबई) का कत्लखाना एशिया का ऐसा कत्लखाना है जो प्रतिवर्ष एक लाख से अधिक पशुओ को मौत के घाट उतारता है ! ये प्रतिमास 80,000 टन मांस का निर्यात करता है !
श्रेणिक जैन
ओम् नमः पाप क्षय पुण्य जमा 

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