Saturday 3 March 2012

देवतुल्य जीव

विचार :-
जो भव्य जीव संसार के समस्त प्राणियों से योग्य क्षमा माँग लेता है और संसार के प्रत्येक प्राणियों को उनके किये गए कार्यों चाहे वो स्वेच्छा से किये हो या बिना जाने उन सबके लिए  ह्रदय से क्षमा कर देता है वही मनुष्य सही मायनों में भव्य जीव होता है, वही साधू होता है, वास्तव में वही अभिवन्द्नीय होता है, और वही वास्तव में देवत्व के पद का सच्चा अधिकारी होता है !
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा
श्रेणिक जैन 

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