Friday 27 April 2012

तन और मन के रोग एवं आत्मा का जागना

विचार :-
आज हमारे तन में जितने रोग नहीं है, उससे कही अधिक रोग हमने अपने मन में पाल रखे हैं ! हमारा चिंतन सकारात्मक कम और नकारात्मक अधिक हो गया है ! मेरा मानना है की हमारे जीवन के प्रति यही सोच हमारे जीवन की कश्ती को डुबो देगी !
अभी भी हमारे पास वक्त है वो कहते है ना की " जब जागो तभी सवेरा " इसीलिए ये श्रेणिक जैन आपसे कहना चाहता है की हम जागे, अन्धकार से बाहर निकले और जीवन को सवारने का प्रयास करें ! जिस दिन अपने आप को हम जगा लेंगे, उसी दिन हमारी आत्मा जाग जायेगी ! जिस प्रकार बादल हट जाने से जैसे आकाश निर्मल हो जाता है उसी प्रकार अज्ञान के अँधेरे के हटने से हमारी आत्मा भी निर्मल हो जायेगी !

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

No comments:

Post a Comment