Monday 23 April 2012

जवानी और बचपन के मोल

विचार :-
आज अपनी ही लिखी कुछ पंक्तियाँ याद आती है
की
कुछ इस तरह हुवे है बड़े हम भगवान
भूले वो अपने बचपन की हर एक बात

कैसे छोटी सी एक चोट के लिए माँ का पल्ला ढूढती आखे
कैसे सारे गम भूला देती थी उसकी वो प्यार की फ्हाके

आज वही माँ पड़ी है एक कोने में
आज उसका आशीर्वाद भी घुटन है

क्यों नहीं काट दी वो जबान जिसने उसके दिल पर चलायी वो तलवार
क्यों नहीं काट दिये वो हाथ जो उसके बुढ़ापे को दे भी ना पा रहे पतवार

क्या कभी २ प्यार के बोल भी नहीं बोल सकते उससे हम
क्या उसने कभी इससे ज्यादा मागा जो दे ना पाए हम

पत्नी तो सिखाती रही और माँ रात भर एक कोने में रहती है रोती
अरे लानत है ! ऐसी जिंदगी पर जो दे भी ना पा रही उसे २ वक्त की रोटी

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा 

2 comments:

  1. Excellent true n fact, inspite of this more certain things are also which parents not accept.

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