Monday 9 April 2012

जीव हिंसा का पाप और सोच

विचार :-
आपसे अनुरोध की आप इसे एक बात पूरी पढ़े और खुद विचार करे........!!!
मै आज आप सब लोगो को एक कहानी के माध्यम से ये बताना चाहता हू की जीव हिंसा चाहे वो जान बुझ कर की हो या अनजाने में, या फिर  जीव हिंसा का भाव ही कितना दुःख देता है !
एक हिंदू कथा के अनुसार :-

जब भीष्म शरशैया पर पड़े थे तो कृष्ण उनसे मिलने आये तो भीष्म बोले कृष्ण मैंने ऐसे कौनसे पाप किये हैं जिनकी इतनी बड़ी सजा मिली. मेरा पूरा शरीर तीरों से बिंधा पड़ा हैं. प्राण निकल नहीं रहे हैं....दर्द इतना हैं की शब्दों में नहीं कहा जा सकता..
कृष्ण ने कहा सब पूर्व जन्मो का फल हैं.तुम अपना 101 वां जन्म देखो !
भीष्म ने देखा की वो अपने रथ से जा रहे थे..आगे सिपाही थे..एक सैनिक आया और बोला महाराज मार्ग में एक सर्प (सांप) पड़ा हैं. रथ उसपर से गुज़र गया तो वह मर जायेगा.
भीष्म ने कहा नहीं वह मरना नहीं चाहिए...एक काम करो उसे किनारे फेंक दो. सैनिक ने उसे भाले से उठा कर खाई में फेंक दिया. वह सर्प खाई के एक कंटीले वृक्ष में उलझ गया. जितना प्रयास उससे निकलने को करता उतने ही कांटे उसके शरीर में घुस जाते. कई दिनों तक उन्ही कांटो में फंसे रहने के बाद उसके प्राण निकले...
तब कृष्ण ने कहा पितामह ये तो आपके द्वारा किया वह पाप था जो अनजाने में हुआ...उसका परिणाम इतने जन्मो बाद भी आपको भोगना पड़ रहा हैं...
तो श्रेणिक जैन आप लोगो से कहना चाहता है सोचिये जो लोग जान बूझ कर जीव हत्या करते हैं उनकी क्या दशा होगी ? आप खुद ही सोचिये ना की कोई धर्म नहीं कहता की जीव हत्या करो...छुरी चलते वक़्त उस जीव की तड़प को महसूस करें...उसकी वेदना, पीड़ा, कराह आपको सिर्फ बद-दुआ ही दे सकती हैं दुआ नहीं...
श्रेणिक जैन
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

2 comments:

  1. जिस जीव को पांचों ज्ञानेन्द्रियों द्वारा जाना जा सकता है । उस जीव की हत्या न्याय एवं नीति की दृष्टि से अनुचित है । जिस जीव की हत्या का न्याय और नीति को स्थापित करने एवं आत्मरक्षा से कोई संबंध नहीं है । इसलिए अन्याय एवं अनीति पर आधारित जीव हत्या धर्म नहीं हो सकती । जो कर्म धर्म के विरुद्ध हो, वह अधर्म है । धर्म तो अन्तिम समय तक क्षमा करने का गुण रखता है । जितना बड़ा पाप, उतना बड़ा प्रायश्चित ।

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