Saturday 26 May 2012

विश्व विजेता या आत्म विजेता

विचार :-
किसी को ना जाने किस बात से खुशी मिल जाये पाता ही नहीं चलता !
कोई किसी को लड़ाई में हरा के खुश है
कोई चुनाव में जीतने से खुश है
और इसी जीत को अपनी सच्ची स्वतंत्रता समझ रहा है
पर क्या आपको लगता है की यही हमारी सच्ची स्वतंत्रता है ????
मेरे विचार से तो चाहे आप छोट्टी मोटी लड़ाई में जीत जाए या विश्व विजेता ही क्यों ना बन जाये लेकिन फिर भी विश्व विजेता बनने से कोई स्वतंत्रता नहीं है वास्तव में सच्ची स्वतंत्रता तो आत्म विजेता बनने से है ना की इतना रक्त बहा कर या किसी भी तरह विश्व विजेता बनने में है !
स्वतंत्रता से मेरा तात्पर्य है सच्चा सुख और आत्मा संतुष्टि से है और अपने अंदर के कर्म रूपी शत्रुओ को नष्ट करने से है !

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

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