Tuesday 8 May 2012

धर्म

विचार :-
जो दुःख से, दुर्गति से, पापाचार से, पतन से, बचाकर आत्मा को ऊँचा उठता है वही मेरे विचार से धर्म है !
मेरे विचार से जो धर्म अन्य धर्मों को हानि पहुँचता है वह धर्म नहीं है और मेरे विचार से तो ऐसे धर्म को धर्म कहलाने का कोई हक नहीं है वह कुमार्ग है ! जो अन्य धर्मों का विरोध न करे, वास्तव में वही सत्य पराक्रम वाला धर्म है !
जो कार्य भगवत प्राप्ति के अनुकूल है, जिसके करने से आत्मा को संतुष्टि मिलती है, जिसके करने से आत्मो को संतुष्टि मिलती है, वाही धर्म है क्योकि मेरा मानना है धर्म को किसी पर जबरदस्ती नहीं थोपा जा सकता है ! अगर कोई इंसान धर्म में लगन ही नहीं लगा सकता तो उसके लिए धर्म का कोई महत्व नहीं फिर चाहे वो जैन धर्म हो या अन्य कोई, उसके लिए सब एक से ही है !

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

No comments:

Post a Comment