Sunday 6 May 2012

दोषों को त्यागें और सद्गुणों को अपनाए

विचार :-
मेरा तो ये ही मानना है अगर हमे जन्म मिला है, इसीलिए जीवन जीना ही है, परन्तु ऐसा जीवन जीएँ की वह सफल और सार्थक हो जाये और मृत्यु के समय पछताना न पड़े ! ऐसा हो सकता है, अपने दोषों को त्यागने और सद्गुणों को अपनाने से !
हाँ ! यह अवश्य याद रखे की यह हम अपने ही उद्धार के लिए कर रहे है, तो मृत्यु तो अवश्य आएगी ! किन्तु सहज और समाधि- भाव से युक्त हो, ऐसा हो सकता है - जीवन में धर्म धारण करने से !

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

1 comment:

  1. धर्म का अर्थ - सत्य, न्याय एवं नीति (सदाचरण) को धारण करना एवं इनकी स्थापना करना ।
    व्यक्तिगत धर्म- सत्य, न्याय एवं नीति को धारण करके, उत्तम कर्म करना व्यक्तिगत धर्म है ।
    असत्य, अन्याय एवं अनीति को धारण करके, कर्म करना अधर्म होता है ।
    सामाजिक धर्म- मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता की स्थापना के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । ईश्वर या स्थिरबुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है । वर्तमान में न्यायपालिका भी यही कार्य करती है ।
    धर्म को अपनाया नहीं जाता, धर्म का पालन किया जाता है । धर्म पालन में धैर्य, संयम, विवेक जैसे गुण आवश्यक है ।
    धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस स्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
    व्यक्ति विशेष के कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म -
    राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।
    जीवन सनातन है परमात्मा शिव से लेकर इस क्षण तक व अनन्त काल तक रहेगा ।
    धर्म एवं मोक्ष (ईश्वर की उपासना, दान, पुण्य, यज्ञ) एक दूसरे पर आश्रित, परन्तु अलग-अलग विषय है ।
    धार्मिक ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।
    राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों से होता है । by- kpopsbjri

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