Wednesday 23 May 2012

माँसाहार पर कुछ विचार

विचार :-
बकरा पाती खात है, ताकि काढे खाल !
जो बकरे को खात है, उनके कोन हवाल !!
माँसाहार मनुष्य के ह्रदय की कोमल भावनाओं को नष्ट -भ्रष्ट कर उसे पूर्णतया निर्दयी और कठोर बना देता है ! मांस किसी खेत में पैदा नहीं होता, ना वृक्ष पर लगता है, ना ही वह आकाश से बरसता है ! वह तो साक्षात चलते-फिरते प्राणियों को मार कर प्राप्त होता है !
जिस समय मांसाहार पाने के लिए प्राणी की हत्या की जाती है उस समय वह प्राणी या पशु भयंकर चिंता और दुःख में घिरे होते है यही दुःख और चिंता मांसाहारी साथ में खाकर अपने अंदर विकार उत्पन करता है ! क्या आप कभी कल्पना भी कर सकते है की बकरा या मुर्गा कटते समय खुश होते होगे की किसी की भूख हमसे मिटने वाली है या हम किसी के खाने के काम आयेगे ?
कितनी विचित्र बात है की दुनिया भर के इंसान मुर्दों को घर से बाहर ले जा कर दफना देते है या जलाते है लेकिन हम ( मांस खाने वाले ) दुनिया भर से मुर्दों को लाकर अपने पेट में दफना देते है !
श्रेणिक जैन आपसे सिर्फ इतना कहना चाहता है की " मांसाहार पशुता है और शाकाहार सभ्यता "

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

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