Friday 4 May 2012

जीव और शरीर में अंतर

विचार :-
जीव शरीर से भिन्न होता है आत्मा रूपी जीव शरीर रूपी पुद्गल (आसान शब्दों में नशवर ) के अंदर सिर्फ वास करता है और कुछ वक़्त के बाद कर्मो के हिसाब से दूसरा शरीर धारण कर लेती है जैसे मनुष्य वस्त्र धारण करता है और उन्हें अगले दिन बदल लेता है ! लेकिन फिर भी हम सिर्फ शरीर के ही पीछे लगे है और इसे ही आत्मा समझ रहे है !
इसे कुछ इस तरह भी समझ सकते है एक मृत शरीर वही होता है उसके पास हाथ भी है लेकिन उन्हें हिला नहीं सकता, पैर भी है पर चल नहीं सकता, आख भी है लेकिन देख नही सकता, मुह भी है पर खा नहीं सकता और यह सब किसके कारण सिर्फ आत्मा रूपी जीव के कारण क्योकि जैसे ही वो शरीर रूपी वस्त्र से निकली पुरे शरीर ने काम करना अपने आप बंद कर दिया !
लेकिन बड़ी दुःख की बात है हम ये सब जानते है फिर भी अपनी आत्मा की कल्याण के लिए कुछ नहीं करते है और इन्ही भोग, विषय और कषायों में पड़े रहते है !
श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

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