Thursday 10 May 2012

संगत की रंगत

विचार :-
सब लोग पता नहीं कैसी कैसी संगत कर लेते है ना की उन्हें खुद भी नहीं पता होता की एक दिन यही संगत उनका सर्वनाश कर देगी क्योकि धीरे धीरे वो उसे सर्वनाश के पथ पर ले जा रही है !
लेकिन संगत पर में एक बात और कहना चाहता हू की जितना जल्दी हम पर बुरी संगत का असर होता है उतना हम पर अच्छी संगत का असर नहीं हो पाता है लेकिन सच्चा इंसान वही है जो बुरी संगत में रह कर भी उनके अवगुणों को छोड कर उनके गुणों को अपना लेता है !
जिस प्रकार एक हंस पानी और दूध के मिश्रण में से भी दूध को ग्रहण कर सकता है उसी प्रकार महापुरुष भी अवगुणों की अपेक्षा गुणों को ही अपनाते है !

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

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