जय जिनेन्द्र का अर्थ है , 'जय ' यानी जयवंत रहो , जयवंत हो जाओ ऐसा भी होता है !
इसके कई अर्थ हो सकते है जैसे :-
१. जयवंत हो जाओ ,
२. जिनेन्द्र भगवन के सामान विजयी बनो
३. जिनेन्द्र भगवान की जय हो
४. विजय बनो , जीतने के लिए संसारी प्राणी के पास बहोत कुछ है ,जीतने के जो विषय है वो अन्तरंग में है , विजय किसपर पाना , एक विकारी भाव और दूसरा विकार भाव उत्पन्न करनेवाले पर विजय पाना है !
जो संसारी प्राणी दुःख से पीड़ित है उसे जय जिनेन्द्र बोलते है , जिनेन्द्र भगवन ने अपने आत्मा के विकारी भावों को जीतकर संसारी वास्तु को जीत लिया है , वैसे ही दुखी व्यक्ति भी दुःख को जीतकर सुखी हो..... जय-जिनेन्द्र – जैनों में परस्पर विनय और प्रेमभाव प्रकट करने के लिये जय-जिनेन्द्र शब्द बोला जाता है । पहली बात तो जय जिनेन्द्र बोलने से जैन होने की पहचान होती है और साथ में भगवान् का नाम भी हम ले लेते है अगर कोई हमारे मुख से जय जिनेन्द्र सुने तो हमारे संस्कार अच्छे दीखते है ......जय जिनेन्द्र
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