विचार :-( ये कविता मेरी कलम की नहीं है पर बहुत सुन्दर है )
मुसीबत में शरीफ़ों की शराफ़त कम नहीं होती,
करो सोने के सौ टुकडे तो क़ीमत कम नहीं होती.
मुझे बचपन में ये सीख दी है मेरी मम्मी ने,
बुज़ुर्गों की दुआ लेने से इज्ज़त कभी कम नहीं होती.
जरूरतमंद को कभी देहलीज से ख़ाली ना लौटाओ,
भगवन के नाम पर देने से दौलत कम नहीं होती.
पकाई जाती है रोटी जो मेहनत के कमाई से,
हो जाए गर बासी तो भी लज्ज़त कम नहीं होती
याद करते है अपनी हर मुसीबत में जिन्हें हम
गुरु और प्रभु के सामने झुकने से गरदन नीचे नहीं होती
मुसीबत में शरीफ़ों की शराफ़त कम नहीं होती,
करो सोने के सौ टुकडे तो क़ीमत कम नहीं होती.
मुझे बचपन में ये सीख दी है मेरी मम्मी ने,
बुज़ुर्गों की दुआ लेने से इज्ज़त कभी कम नहीं होती.
जरूरतमंद को कभी देहलीज से ख़ाली ना लौटाओ,
भगवन के नाम पर देने से दौलत कम नहीं होती.
पकाई जाती है रोटी जो मेहनत के कमाई से,
हो जाए गर बासी तो भी लज्ज़त कम नहीं होती
याद करते है अपनी हर मुसीबत में जिन्हें हम
गुरु और प्रभु के सामने झुकने से गरदन नीचे नहीं होती
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