कोर्ट में अलग ही मुकद्दमा आया
सिपाही एक कुत्ते को बांध कर लाया
सिपाही ने जब कटघरे में उस कुत्ते को खोला
कुत्ता रहा चुपचाप, मुह से कुछ भी ना बोला
नुकिले दाँदां में कुछ खून-सा
नज़र आ रहा था
चुपचाप था कुत्ता, किसी से नजर नही मिला रहा था
हुआ खड़ा एक वकील
देने लगा दलील
बोला, ये ज़ालिम पेचीदा है
जज सॉब ये कुत्ता है
इसने जो साख कमाई है
देख कै इन्सानियत घबराई है
क्रुर है, निर्दयी है, इसने बहुत तबाही मचाई है
दो दिन पहले जन्मी एक कन्या, अपने दांतों से खाई है
अब कतई ना देखो बाट
उतारो इसको मौत के घाट
जज का गया खून खोल
तू क्यूँ खाई कन्या अबे बोल
हुक्म आप इसे जिंदा रहने मत दो
कुत्ते का वकील बोला, इसे भी कुछ कहने तो दो
तब कुत्ते ने अपना मुँह खोला
बड़े ही सहज सुर मैं वो बोला
हाँ, मैंने वो कन्या खाई है
अपनी कुत्तानियत निभाई है
कुत्ते का धर्म है नही दया दिखाना
माँस चाहे किसी-का हो, बस खा जाना
पर मैं दया-धर्म से दूर नही
खाया तो है, पर मेरा कसूर नही
मुझे पता है, जब वो बच्ची गई फैकाई
और कोई नही, उसकी माँ ही उसे फेंकने आई
जब मैं उस कन्या के गया पास
उसकी आंखो मैं देखा भोला विश्वास
जब वो मेरी जीभ देख कै मुस्काई थी
कुत्ता हूँ, पर उसने मेरे अन्दर इन्सानियत जगाई थी
मैंने सूंघ- कर बड़ी मुश्किल से वो घर खोजा था
जहाँ थी माँ उसकी, और बालक भी सोया था
मैंने कू-कू करकै वो माँ जगाई
पूछा तुने वो, कन्या क्यों फैकाई
चल, मेरे पीछे, उसे लै कै आ
भूखी है वो, उसे अपना दूध पिला
माँ सुनते ही रोने लगी
अपने दुखडे धोने लगी
बोली, नही लाऊँगी अपने कलेजे के टुकड़े को
कैसे कर खोल बताऊँ अपने मन के दुखड़ै को
मेरे घर पहले ही चार छोरीयाँ है
दो को बुखार है, और दो चटाई पै सो रई है
मेरी सास मारै है ताना की मार
मुझे पीटने आता मेरा भरतार
बोला, फिर छोरी ले आई
कैसे होगी इनकी ब्याह सगाई
वंश की तुने काट दी बेल
जा खत्म कर दे इसका खेल
माँ हूँ, पर थी मेरी लाचारी
तब फैंक आई, छोरी प्यारी
कुत्ते का गला भर गया
पर ब्यान वो पुरा कर गया
बोला, मैं फिर वापस आ गया
दिमाग मैं मेरे धुंआ सा छा गया
वो कन्या अंगूठा चूस रही थी
हँसी ऐसे जैसे मेरे इन्तजार में जाग रही थी
कलेजे पै धर लिया मैंने पात्थर
थर-थर काँपने लगा मेरा ज़ॉथर
बोला, ऐ बावली, जी कै, क्या करेगी
दूध नही, जहर है, पी कै, क्या करेगी
हम कुत्तो को करते है बदनाम
हम से ज्यादा घिनौने करते है काम
कब ज़िन्दी अरक दे पेट मैं मरवाते है
और अपने आप को इन्सान बताते है
मेरे मन मैं भय कर गई उसकी मुस्कान
मैंने आज इतना तो लिया जान
जो समाज इस-से नफरत करता है
कन्या हत्या-सी गन्दी हरकत करता है
वहाँ-से तो इसका जाना अच्छा
इसका तो मर जाना अच्छा
तुम लटकाओ मुझे फांसी, चाहे मारो जूत्ते
पर ढूढ कै लाओ पहले वो इन्सानी कुत्ते
पर ढूढ कै लाओ पहले वो इन्सानी कुत्ते
सिपाही एक कुत्ते को बांध कर लाया
सिपाही ने जब कटघरे में उस कुत्ते को खोला
कुत्ता रहा चुपचाप, मुह से कुछ भी ना बोला
चुपचाप था कुत्ता, किसी से नजर नही मिला रहा था
हुआ खड़ा एक वकील
देने लगा दलील
बोला, ये ज़ालिम पेचीदा है
जज सॉब ये कुत्ता है
इसने जो साख कमाई है
देख कै इन्सानियत घबराई है
क्रुर है, निर्दयी है, इसने बहुत तबाही मचाई है
दो दिन पहले जन्मी एक कन्या, अपने दांतों से खाई है
अब कतई ना देखो बाट
उतारो इसको मौत के घाट
जज का गया खून खोल
तू क्यूँ खाई कन्या अबे बोल
हुक्म आप इसे जिंदा रहने मत दो
कुत्ते का वकील बोला, इसे भी कुछ कहने तो दो
तब कुत्ते ने अपना मुँह खोला
बड़े ही सहज सुर मैं वो बोला
हाँ, मैंने वो कन्या खाई है
अपनी कुत्तानियत निभाई है
कुत्ते का धर्म है नही दया दिखाना
माँस चाहे किसी-का हो, बस खा जाना
पर मैं दया-धर्म से दूर नही
खाया तो है, पर मेरा कसूर नही
मुझे पता है, जब वो बच्ची गई फैकाई
और कोई नही, उसकी माँ ही उसे फेंकने आई
जब मैं उस कन्या के गया पास
उसकी आंखो मैं देखा भोला विश्वास
जब वो मेरी जीभ देख कै मुस्काई थी
कुत्ता हूँ, पर उसने मेरे अन्दर इन्सानियत जगाई थी
मैंने सूंघ- कर बड़ी मुश्किल से वो घर खोजा था
जहाँ थी माँ उसकी, और बालक भी सोया था
मैंने कू-कू करकै वो माँ जगाई
पूछा तुने वो, कन्या क्यों फैकाई
चल, मेरे पीछे, उसे लै कै आ
भूखी है वो, उसे अपना दूध पिला
माँ सुनते ही रोने लगी
अपने दुखडे धोने लगी
बोली, नही लाऊँगी अपने कलेजे के टुकड़े को
कैसे कर खोल बताऊँ अपने मन के दुखड़ै को
मेरे घर पहले ही चार छोरीयाँ है
दो को बुखार है, और दो चटाई पै सो रई है
मेरी सास मारै है ताना की मार
मुझे पीटने आता मेरा भरतार
बोला, फिर छोरी ले आई
कैसे होगी इनकी ब्याह सगाई
वंश की तुने काट दी बेल
जा खत्म कर दे इसका खेल
माँ हूँ, पर थी मेरी लाचारी
तब फैंक आई, छोरी प्यारी
कुत्ते का गला भर गया
पर ब्यान वो पुरा कर गया
बोला, मैं फिर वापस आ गया
दिमाग मैं मेरे धुंआ सा छा गया
वो कन्या अंगूठा चूस रही थी
हँसी ऐसे जैसे मेरे इन्तजार में जाग रही थी
कलेजे पै धर लिया मैंने पात्थर
थर-थर काँपने लगा मेरा ज़ॉथर
बोला, ऐ बावली, जी कै, क्या करेगी
दूध नही, जहर है, पी कै, क्या करेगी
हम कुत्तो को करते है बदनाम
हम से ज्यादा घिनौने करते है काम
कब ज़िन्दी अरक दे पेट मैं मरवाते है
और अपने आप को इन्सान बताते है
मेरे मन मैं भय कर गई उसकी मुस्कान
मैंने आज इतना तो लिया जान
जो समाज इस-से नफरत करता है
कन्या हत्या-सी गन्दी हरकत करता है
वहाँ-से तो इसका जाना अच्छा
इसका तो मर जाना अच्छा
तुम लटकाओ मुझे फांसी, चाहे मारो जूत्ते
पर ढूढ कै लाओ पहले वो इन्सानी कुत्ते
पर ढूढ कै लाओ पहले वो इन्सानी कुत्ते
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