Thursday 19 July 2012

स्वर्ग और स्वर्गीय का अंतर

विचार :-
मुझसे एक प्रश्न पूछा गया जिसका मैं जवाब उसी वक्त ना दे सका बाद में दिया आप भी देखे की क्या मेरा जवाब सही है !
प्रश्न :- मैं स्वर्ग अपनी मुठी में बंद कर लू इसके लिए क्या करू ?
मेरा जवाब था :- स्वर्ग को मुट्ठी में करने का मार्ग तो मुझे नहीं पता पर अपनी जीवन को स्वर्ग बनाने का मार्ग में अवश्य बता सकता हू ! इसके लिए सिर्फ पांच बातें याद रखे !
१.दिमाग को "ठंडा" रखो !
२.जेब को "गर्म" रखो !
३.आखों में "शर्म" रखो !
४.जुबान को "नर्म" रखो !
५.दिल में "रहम" रखो !
अगर ये पांच काम आप कर लो तो आपको फिर कही स्वर्ग ढूढ़ने जाने की जरुरत नहीं आपको स्वर्ग खुद ढूढता हुवा चला आएगा ! लेकिन दोस्तों कितनी विडम्बना है ना की हम स्वर्ग तो चाहते है मगर "स्वर्गीय" होना नहीं चाहते !

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

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