विचार :-
हम सब जीव है अर्थात हम सब की आत्मा जीव है और शरीर अजीव ! जीव अरूपी है, केवल इन्द्रियों से ही समझा, जाना और महसूस किया जा सकता है !
जीव हमेसा ही एक हवा की तरह है जिसकी शीतलता और मधुरता सिर्फ मह्सूस की जा सकती है वह ढूध में हमेसा मक्खन की तरह विधमान रहती है जिसने इस सच्चाई को जान लिया वही संसार सागर से पार उतर गया और जो इस शरीर के सुखो को ही सच्चा सुख मान लिया वह अनादी काल तक भोगो में भी और संसार की गतियो और अंसंख्य योनियों में ही भटकता रह गया !
श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा
हम सब जीव है अर्थात हम सब की आत्मा जीव है और शरीर अजीव ! जीव अरूपी है, केवल इन्द्रियों से ही समझा, जाना और महसूस किया जा सकता है !
जीव हमेसा ही एक हवा की तरह है जिसकी शीतलता और मधुरता सिर्फ मह्सूस की जा सकती है वह ढूध में हमेसा मक्खन की तरह विधमान रहती है जिसने इस सच्चाई को जान लिया वही संसार सागर से पार उतर गया और जो इस शरीर के सुखो को ही सच्चा सुख मान लिया वह अनादी काल तक भोगो में भी और संसार की गतियो और अंसंख्य योनियों में ही भटकता रह गया !
श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा
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