Sunday, 27 May 2012

चक्कर मुक्तक (17)


चक्कर मुक्तक (17)
कभी धुप का चक्कर कभी छाया का चक्कर
मिल गयी काया तो लगा रोग का चक्कर
और अगर मिल गई कुटला नारी तो
जीवन भर चक्कर ही चक्कर
इसलिए कहता हू छोड दो इन सब को पीछे
आ जाओ गुरु के आस पास
तो मिट जाएगा तुम्हरे भावो भावो का चक्कर

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

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