विचार :-
भारतीय संस्कृति हमेसा से ही कीचड़ में कमल की तरह रही है और वो भी हमेसा खिली ही है जिसने हमेसा से ही सत्य, अहिंसा, अचौर्य (चोरी न करना ), ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह की शिक्षा दी है !
श्रेणिक जैन का तो यही विचार है की जिस प्रकार कीचड़ में कीड़े की तरह जीने वाला अज्ञानी और कमल की तरह खिलने वाला ज्ञानी होता है ठीक उसी प्रकार अपनी भारतीय संस्कृति जिसे बड़े बड़े ज्ञानियों ने अपने ज्ञान से सिचा है भी कीचड़ में हमेसा कमल की तरह खिली है और खिलती रहेगी !
कीचड़ में कीड़े की तरह रहना दुर्भाग्य है और कमल की तरह रहना सौभाग्य है इसीलिए हमेसा कमल की तरह रहे ना की कीड़े की तरह !
श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा
भारतीय संस्कृति हमेसा से ही कीचड़ में कमल की तरह रही है और वो भी हमेसा खिली ही है जिसने हमेसा से ही सत्य, अहिंसा, अचौर्य (चोरी न करना ), ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह की शिक्षा दी है !
श्रेणिक जैन का तो यही विचार है की जिस प्रकार कीचड़ में कीड़े की तरह जीने वाला अज्ञानी और कमल की तरह खिलने वाला ज्ञानी होता है ठीक उसी प्रकार अपनी भारतीय संस्कृति जिसे बड़े बड़े ज्ञानियों ने अपने ज्ञान से सिचा है भी कीचड़ में हमेसा कमल की तरह खिली है और खिलती रहेगी !
कीचड़ में कीड़े की तरह रहना दुर्भाग्य है और कमल की तरह रहना सौभाग्य है इसीलिए हमेसा कमल की तरह रहे ना की कीड़े की तरह !
श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा
No comments:
Post a Comment