विचार :-
मेरे और मेरे एक दोस्त में हमेसा ये बहस रहती है की दूसरों का सहारा कहा तक उचित है !
मेरा कहना हमेसा ये रहता है की हमें दूसरों का सहारा कम से कम लेना चाहिए जबकि उसका ये कहना होता है की वो दूसरों के सहारे चलता रहेगा और दूसरों के सहारे चलते चलते आज वो अपने ही पैरों की ताकत कम कर बैठा है !
श्रेणिक जैन हमेसा एक बात ही कहना चाहता है दूसरों के सहारे चलना वहाँ तक उचित है जहाँ तक आप अपने पैरों की ताकत ना खो दे ! क्योकि केवल अपने ही सहारे चलने के लिए आपका जीवन कम पड़ जायेगा और बहुत से काम के हमें दूसरों के सहारे चलने की जरुरत पड़ती ही रहती है !
श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा
मेरे और मेरे एक दोस्त में हमेसा ये बहस रहती है की दूसरों का सहारा कहा तक उचित है !
मेरा कहना हमेसा ये रहता है की हमें दूसरों का सहारा कम से कम लेना चाहिए जबकि उसका ये कहना होता है की वो दूसरों के सहारे चलता रहेगा और दूसरों के सहारे चलते चलते आज वो अपने ही पैरों की ताकत कम कर बैठा है !
श्रेणिक जैन हमेसा एक बात ही कहना चाहता है दूसरों के सहारे चलना वहाँ तक उचित है जहाँ तक आप अपने पैरों की ताकत ना खो दे ! क्योकि केवल अपने ही सहारे चलने के लिए आपका जीवन कम पड़ जायेगा और बहुत से काम के हमें दूसरों के सहारे चलने की जरुरत पड़ती ही रहती है !
श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा
No comments:
Post a Comment