Friday 3 August 2012

शरीर और आत्मा

विचार :-
श्रेणिक जैन के अनुसार जिस प्रकार मनुष्य के द्वारा चलाया गया गतिशील यंत्र ( चलने वाला यंत्र ) जो स्वयं गति रहित होता है उसी तरह जीव के द्वारा धारण किया हुवा शरीर स्वयं गति रहित है, जड़ है !
ठीक उसी प्रकार यह शरीर घृणित दुर्गन्ध से युक्त है और संताप ही उत्पन्न करने वाला है इसीलिए इस शरीर में अनुराग करना व्यर्थ है ! मैं ये नहीं कहता की इससे मोह छोड कर खाना पीना ही छोड दो बल्कि मैं ये कहता हू की जीने के लिए जितना जरुरी उतम अनुराग इस शरीर से रखो ना की सिर्फ इस शरीर के लिए जियो !

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

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