Wednesday 8 August 2012

आसन का मोह

विचार :- यह विचार देश के कुछ भ्रष्ट नेताओ के नाम :-
वर्तमान में सबसे भ्रान्ति ये बन गयी है की अगर मेरे पास आसन ( कुर्सी ) है तो मेरे पास सब कुछ है इसीलिए पता नहीं क्यों हर किसी को आसन से इतना मोह हो गया है की एक बार बैठ जाए तो उठने का नाम ही नहीं लेता चाहे उस मंत्री का आचरण से कोसो दूर तक कोई नाता ना हो परन्तु आसन से उनका रिश्ता ऐसा हो जाता है जैसे दूध से मक्खी का !
परन्तु हे नेताओ एक बात जान लो ये कुर्सी ना तो कभी किसी की थी ना ही होगी जाने कितने नेता आये और गए लेकिन जनता कभी कम नहीं हुई आसन पर बैठने मात्र से आप महाजन नहीं बन सकते उसके लिए आचरण होना जरुरी है !
जैन कथाओ के अनुसार जिनेन्द्र देव को कभी रत्नामयी आसन नहीं भाता है और वे अपने आसन से हमेसा चार अंगुल उप्पर विराजमान होते है !
यही नहीं हिंदू मान्यताओ के अनुसार भी शिव कभी रत्न से जड़े आसन पर नहीं बल्कि कैलाश पर पत्थर की शिला पर विराजमान होते है उनके ही भगवान विष्णु कभी रत्नों के सिंघासन पर नहीं बल्कि शेषनाग पर आसन ग्रहण करते है ! ऐसे ही ना जाने कितने उदाहरण है !
तो बंधुओ आसन से राग छोड कर वीतरागता को अपनाने में ही सद्गति को प्राप्त किया जा सकता है !

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

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