Friday 10 August 2012

घ्रणा का फल

विचार :-

एक बाग़ में एक सुन्दर कलि फूटी ,वही जमींन पर एक पत्थर का टुकडा पड़ा था, किसी आने -जाने वाले से उस पत्थर को ठोकर लग गयी, यह देखकर वह कली हंस पड़ी -'' मुझे देखकर सब खुश हो जाते है पर तुझे देखकर सब ठोकर लग जाने से दुखी ही होते है ''|
दैवयोग से एक कारागीर वहाँ से गुजरा और उसे वह पत्थर बहुत पसंद आया और वह पत्थर के उस टुकड़े को ले गया, उसकी मूर्ति बनाकर मंदिर में प्रतिष्ठित करवा दी, तब तक कली भी फूल बन गयी थी, उसे किसी व्यक्ति ने तोड़कर उसी मूर्ति के सामने भेंट कर दिया, तब उस मूर्ति ने कहा -''अरे तुम तो मेरी हंसी उडाती थी ,आज यहाँ मेरे चरणों में आकर क्यों पड़ी हो ?"
तब उस फूल को बात समझ आई और उसने कहा - "किसी के प्रति घृणा भाव ( तिरस्कार भाव ) रखोगे तो हालत मेरे जैसी ही हो जायेगी |''
तो बंधू हमें भी अपनी जिंदगी में घ्रणा भाव नहीं रखना चाहिए !
श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

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