विचार :-
कितना सार्थक बन पड़ा है ये हिंदी फिल्म जगत का एक गीत आज के देश के नाम
जाने कहाँ ... गए वो दिन , कहते थे तेरी राह में नज़रों को हम बिछाएंगे
जाने कहाँ ... गए वो दिन , कहते थे तेरी राह में नज़रों को हम बिछाएंगे
चाहे कहीं भी तुम रहो , चाहेंगे तुमको उम्र भर तुमको ना भूल पाएंगे
मेरे कदम जहां पड़े , सजदे किये थे यार ने
मेरे कदम जहां पड़े , सजदे किये थे यार ने
मुझको रुला रुला दिया जाती हुई बहार ने
जाने कहाँ ... गए वो दिन , कहते थे तेरी राह में नज़रों को हम बिछाएंगे
चाहे कहीं भी तुम रहो , चाहेंगे तुमको उम्र भर तुमको ना भूल पाएंगे
अपनी नज़र में आज कल , दिन भी अन्धेरी रात है
अपनी नज़र में आज कल , दिन भी अन्धेरी रात है
साया ही अपने साथ था , साया ही अपने साथ है
जाने कहाँ ... गए वो दिन , कहते थे तेरी राह में नज़रों को हम बिछाएंगे
चाहे कहीं भी तुम रहो , चाहेंगे तुमको उम्र भर तुमको ना भूल पाएंगे
कितना सार्थक बन पड़ा है ये हिंदी फिल्म जगत का एक गीत आज के देश के नाम
जाने कहाँ ... गए वो दिन , कहते थे तेरी राह में नज़रों को हम बिछाएंगे
जाने कहाँ ... गए वो दिन , कहते थे तेरी राह में नज़रों को हम बिछाएंगे
चाहे कहीं भी तुम रहो , चाहेंगे तुमको उम्र भर तुमको ना भूल पाएंगे
मेरे कदम जहां पड़े , सजदे किये थे यार ने
मेरे कदम जहां पड़े , सजदे किये थे यार ने
मुझको रुला रुला दिया जाती हुई बहार ने
जाने कहाँ ... गए वो दिन , कहते थे तेरी राह में नज़रों को हम बिछाएंगे
चाहे कहीं भी तुम रहो , चाहेंगे तुमको उम्र भर तुमको ना भूल पाएंगे
अपनी नज़र में आज कल , दिन भी अन्धेरी रात है
अपनी नज़र में आज कल , दिन भी अन्धेरी रात है
साया ही अपने साथ था , साया ही अपने साथ है
जाने कहाँ ... गए वो दिन , कहते थे तेरी राह में नज़रों को हम बिछाएंगे
चाहे कहीं भी तुम रहो , चाहेंगे तुमको उम्र भर तुमको ना भूल पाएंगे
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