विचार :-
किसी ने सच ही कहा है की जिंदगी के चार ही दिन होते है और वो चार दिन भी दो आरज़ू में और दो इन्तेज़ार में कट जाते है ! इससे आगे बढे तो इंसान की सिर्फ दो दिन की कुल जिंदगी है और उन दो दिनों में से एक दिन मौत का भी आता है अब बचा एक दिन फिर पता नहीं क्यों ? इंसान किस चीज़ पर इतना अकड़ता फिरता है ?
जिंदगी की हैसियत एक मुट्ठी राख से ज्यादा कुछ नहीं लेकिन इंसान है की उसी एक मुट्ठी राख पर इतरा रहा है !
श्रेणिक जैन
किसी ने सच ही कहा है की जिंदगी के चार ही दिन होते है और वो चार दिन भी दो आरज़ू में और दो इन्तेज़ार में कट जाते है ! इससे आगे बढे तो इंसान की सिर्फ दो दिन की कुल जिंदगी है और उन दो दिनों में से एक दिन मौत का भी आता है अब बचा एक दिन फिर पता नहीं क्यों ? इंसान किस चीज़ पर इतना अकड़ता फिरता है ?
जिंदगी की हैसियत एक मुट्ठी राख से ज्यादा कुछ नहीं लेकिन इंसान है की उसी एक मुट्ठी राख पर इतरा रहा है !
श्रेणिक जैन
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