Wednesday 30 May 2012

उत्तम क्षमा

विचार :-
क्षमा भाव सम्पूर्ण मानव जाति के विकाश में ठीक उसी प्रकार समर्थ और सार्थक हो सकता है जिस प्रकार वृक्षों  के संवर्धन ( निरंतर वृधि ) में जल-वायु व खाद एवं सूर्य के प्रकाश !
मेरे विचार से उत्तम क्षमा और क्षमा का भाव रहना हर इंसान के ह्रदय से होना चाहिए क्योकि सिर्फ मनुष्य के मुँह से कह देना ही काफी नहीं है उत्तम क्षमा तो तभी हो सकती है जब क्षमा दिल से हो !
इसीलिए मेरे विचार से अगर क्षमा करे तो पुरे दिल से करे आप देखना किसी को क्षमा करके आपको भी आनंद महसूस होगा !

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा......

संयम मुक्तक (18)

संयम मुक्तक (18)
संयम  लिया  है  हमने  हद  तक  निभायेगे ,
कर्मो  को  अब  तो  हंस-हंस  कर  भगायेगे  !
जियेगे संयम के खातिर समाधि लेगे आत्म हित में,
सबक  संयम  का  सारी  दुनिया  को  सिखायेगे !!


श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा......

Monday 28 May 2012

अनुचित लाभ

विचार :-
मुझे ऐसा लगता है की पैसा किसी को बुरा नहीं लगता और लगे भी क्यों ?
आखिर घर आते हुवे पैसा को कौन मना करता है और ये बात कुछ हद्द तक सही भी है !
ये सही है की घर आते हुए पैसे को कोई मना नहीं करता और अगर वह पैसा अच्छा हो तो मना करना भी नहीं चाहिए ! (अच्छे पैसे से मेरा मतलब अच्छे कार्य करते और मन में शुद्धि और किसी का अहित ना करने की इच्छा से आने वाला पैसा )
लेकिन में सिर्फ इतना कहना चाहता हू की अनुचित पैसा या लाभ जब भी होता है तब तो बहुत सुहावना लगता है लेकिन इतना याद रखना वह कभी आपके पास ज्यादा समय तक टिका नहीं रह सकता और जब जाता है तो हमेसा अपने पीछे असीम त्रास के साथ अपने बुरे होने का अहसास भी छोड जाता है !

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा......

Sunday 27 May 2012

चक्कर मुक्तक (17)


चक्कर मुक्तक (17)
कभी धुप का चक्कर कभी छाया का चक्कर
मिल गयी काया तो लगा रोग का चक्कर
और अगर मिल गई कुटला नारी तो
जीवन भर चक्कर ही चक्कर
इसलिए कहता हू छोड दो इन सब को पीछे
आ जाओ गुरु के आस पास
तो मिट जाएगा तुम्हरे भावो भावो का चक्कर

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

Saturday 26 May 2012

विश्व विजेता या आत्म विजेता

विचार :-
किसी को ना जाने किस बात से खुशी मिल जाये पाता ही नहीं चलता !
कोई किसी को लड़ाई में हरा के खुश है
कोई चुनाव में जीतने से खुश है
और इसी जीत को अपनी सच्ची स्वतंत्रता समझ रहा है
पर क्या आपको लगता है की यही हमारी सच्ची स्वतंत्रता है ????
मेरे विचार से तो चाहे आप छोट्टी मोटी लड़ाई में जीत जाए या विश्व विजेता ही क्यों ना बन जाये लेकिन फिर भी विश्व विजेता बनने से कोई स्वतंत्रता नहीं है वास्तव में सच्ची स्वतंत्रता तो आत्म विजेता बनने से है ना की इतना रक्त बहा कर या किसी भी तरह विश्व विजेता बनने में है !
स्वतंत्रता से मेरा तात्पर्य है सच्चा सुख और आत्मा संतुष्टि से है और अपने अंदर के कर्म रूपी शत्रुओ को नष्ट करने से है !

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

Wednesday 23 May 2012

गुरु और उनकी बात मुक्तक (16)

गुरु और उनकी बात मुक्तक ( 16 )
गुरु   की   बात   जमाने   से   निराली  देखी,
उनके आशीर्वाद से फलती फूलती डाली देखी !
गुरु   शैतान   को   इंसान   बना   देते   है  ,
गुरु   पत्थर  को  भी  भगवान  बना  देते  है !!


श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

माँसाहार पर कुछ विचार

विचार :-
बकरा पाती खात है, ताकि काढे खाल !
जो बकरे को खात है, उनके कोन हवाल !!
माँसाहार मनुष्य के ह्रदय की कोमल भावनाओं को नष्ट -भ्रष्ट कर उसे पूर्णतया निर्दयी और कठोर बना देता है ! मांस किसी खेत में पैदा नहीं होता, ना वृक्ष पर लगता है, ना ही वह आकाश से बरसता है ! वह तो साक्षात चलते-फिरते प्राणियों को मार कर प्राप्त होता है !
जिस समय मांसाहार पाने के लिए प्राणी की हत्या की जाती है उस समय वह प्राणी या पशु भयंकर चिंता और दुःख में घिरे होते है यही दुःख और चिंता मांसाहारी साथ में खाकर अपने अंदर विकार उत्पन करता है ! क्या आप कभी कल्पना भी कर सकते है की बकरा या मुर्गा कटते समय खुश होते होगे की किसी की भूख हमसे मिटने वाली है या हम किसी के खाने के काम आयेगे ?
कितनी विचित्र बात है की दुनिया भर के इंसान मुर्दों को घर से बाहर ले जा कर दफना देते है या जलाते है लेकिन हम ( मांस खाने वाले ) दुनिया भर से मुर्दों को लाकर अपने पेट में दफना देते है !
श्रेणिक जैन आपसे सिर्फ इतना कहना चाहता है की " मांसाहार पशुता है और शाकाहार सभ्यता "

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

Monday 21 May 2012

मौत

विचार :-
मौत एक गूढ़ और सास्वत सत्य है तो क्यों ना इसे अपना लिया जाये इसे क्यों नहीं अपना सकते हम ?
मौत अपनाने से मेरा मतलब ये नहीं की हम मौत को गले लगा ले बल्कि इससे मेरा मतलब मौत रूपी सच को अपनी आत्मा में उतारकर उसके लिए कुछ ठोस कदम उठाने से है !
सबसे बड़े दुःख की बात ये नहीं है की मौत एक सच है बल्कि सबसे बड़े दुःख की बात ये है की हम ये जानते हुवे भी की मौत एक दिन आनी ही आनी है हम इस संसार को इस तरह अपने और अपनी आत्मा पर हावी कर रहे है की कल अगर हम चाहे भी तो इस संसार से निकल कर मोक्ष की तरफ अपना कदम ना बढ़ा पाए !
श्रेणिक जैन आपसे सिर्फ इतना कहना चाहता है की जब सिकंदर ( विश्व विजेता ), रावण ( महान वेदों और ग्रंथो का ज्ञाता ) और बड़े बड़े ऋषि मुनि और संत जो मोक्ष ना जा सके वो भी इस संसार से चले गए तो हम- तुम जैसो की क्या औकात !

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

Saturday 19 May 2012

समाज का दर्पण

विचार :-
मेरे विचार से युवक और युवतियाँ ही समाज का दर्पण होते है, जिस प्रकार समाज की छवि होगी वैसा ही प्रतिबिम्ब युवक और युवतियों में देखने को मिलेगा !
मेरे विचार से तो बालक हमेसा पालन करने वाले ( माता -पिता या अन्य ) की छवि होते है जैसे बालक के माता और पिता होगे वैसे ही संस्कार बच्चो में पड़ते चले जायेगे जिस प्रकार एक नेगेटिव के अनुसार ही फोटो होता है उसके विपरीत नहीं उसी प्रकार यदि माता - पिता बिगड़े हुवे है तो कोई कारण नहीं की बच्चो पर इसका असर ना पड़े !
इसीलिए श्रेणिक जैन की अनुसार तो पहले बडो को अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए सजग एवं सावधान रहना चाहिए ! बच्चे, बडो को देखकर ही अपने आप सुधर जाते है लेकिन अगर बड़े ही बिगड़े है तो बच्चे अपने आप बिगड जायेगे ! बडो के सुधरे बिना बच्चो का सुधर पाना असंभव नहीं तो दुसाध्य अवश्य है !

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

Friday 18 May 2012

सहनशक्ति

विचार :-
आज जब मैंने अखबार पढ़ा तो जैसे मेरे पैर के नीचे से जमीन ही खिसक गयी ! मैंने एक खबर पढ़ी की Overtake ( वाहन चलते वक्त गति बढ़ा कर अपने से आगे के वाहन को पीछे छोडना ) करने वाले को गोलियों से भूना गया !
मुझे ये समझ नहीं आया की मै किस प्रकार प्रतिक्रिया दू क्योकि मै यह सोचने लगा था की क्या हो गया है हमारे देश वालो को, क्यों हमारी सहनशक्ति इस तरह से जवाब देने लगी है की हम अब Overtake करने जैसे छोटे से कार्य को भी सामान्य दृष्टि से नहीं देख पा रहे है और उस पर इतना गुस्सा प्रकट कर रहे है की सामने वाले को मौत के घाट तक उतार दिया जाता है !
श्रेणिक आपसे सिर्फ इतना पूछना चाहता है की कहाँ  गया वो विश्वगुरु कहलाने वाला हमारा भारत जिसने सहनशीलता कूट कूट के भरी होती थी ! ज़रा विचार कीजिये क्या यही हम अपने आने वाली पीढ़ी को सिखाने वाले है और क्या असर हो रहा होगा जब वो इस तरह की चीजे अखबारों में पढते होते...............!!!!!!!!!

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

Wednesday 16 May 2012

हाथ की बात से धर्म का अनुष्ठान

विचार :-
मेरे विचार से वैसे तो यह अच्छा है की हम दूसरों को सुधार पाए लेकिन अगर हम ये ना कर पाए मतलब दूसरों को सुधारने में उनकी मदद ना कर पाए तो हम कभी भी किसी के साथ ऐसा व्यवहार ना करे जो हम खुद के लिए नहीं चाहते इससे दूसरों को भी प्रेरणा मिलेगी !
इसे मै एक उदाहरण से समझाना चाहता हू देखो मेरा कोई नुकसान न करे - ये मेरे हाथ की बात नहीं है, पर मैं किसी का नुकसान न करू यह तो मेरे हाथ में है ! इसी प्रकार ऐसा जो मुझे अच्छा ना लगे, कोई मेरे साथ न करे , यह हाथ की बात नहीं है, परन्तु वही गलत कार्य मैं किसी के साथ ना करू ये हाथ की बात है ! अतः जो हाथ की बात है, उडी को करना ही सच्चे धर्म का अनुष्ठान है !
श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा 

Monday 14 May 2012

लत से मुक्ति की कोशिश और इच्छा शक्ति

विचार :-
मैंने बहुत से लोगो को देखा की उनमे कोई ना कोई लत होती है जैसे गुटका, सुपारी, बीडी, सिगरेट आदि ये बहुत दुःख की बात है लेकिन इससे भी दुःख की बात तब हो जाती है की जब वो लोग खुद जानते है की ये आदत ठीक नहीं है ये हमारे शरीर और घर पर बुरा असर डाल रही है !
मैंने बहुत से लोगो को कहते सुना की हम कोशिश करते है पर लत नहीं छुट पा रही लेकिन मुझे लगता है उन्होंने कोशिश ही नहीं की नहीं तो ऐसा क्या है जो इंसान नहीं कर सकता है आज इसके कई उदाहरण है हमारे पास की इंसान ने जो चाहा वो पा लिया !
एक बात हमेसा समझ ले की जब तक हम अपनी इच्छा शक्ति को मजबूत नहीं करेगे हम किसी भी लत या परेशानी से मुक्ति नहीं पा सकते !

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

Saturday 12 May 2012

जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा

विचार :-
एक कहानी अगर आपको ये कहानी पसंद आये तो इसे दूसरों के साथ शेयर करें ,मैं आपसे शर्त लगाने के लिए तैयार हूँ कि ये बहुत लोगों के जीवन को छुएगी.


एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोजाना भोजन पकाती थी और एक रोटी वह वहां से गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी,
वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी जिसे कोई भी ले सकता था .
एक कुबड़ा व्यक्ति रोज उस रोटी को ले जाता और बजाय धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बडबडाता "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा "
दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा, वो कुबड़ा रोज रोटी लेके जाता रहा और इन्ही शब्दों को बडबडाता "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा "
वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी कि "कितना अजीब व्यक्ति है, एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है और न जाने क्या क्या बडबडाता रहता है, मतलब क्या है इसका ".
एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली "मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी " और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में जहर मिला दीया जो वो रोज उसके लिए बनाती थी और जैसे ही उसने रोटी को को खिड़की पर रखने कि कोशिश कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और रुक गये और वह बोली "
हे भगवन मैं ये क्या करने जा रही थी ?" और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे कि आँच में जला दीया .एक ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी ,
हर रोज कि तरह वहकुबड़ा आया और रोटी लेके "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा " बडबडाता हुआ चला गया इस बात से बिलकुल बेखबर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है .
हर रोज जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह भगवान से अपने पुत्र कि सलामती और अच्छी सेहत और घर वापसी के लिए प्रार्थना करतीथी जो कि अपने सुन्दर भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ था.महीनों से उसकी कोई खबर नहीं थी.
शाम को उसके दरवाजे पर एक दस्तक होती है, वह दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है ,
अपने बेटे को अपने सामने खड़ा देखती है. वह पतला और दुबला हो गया था. उसके कपडे फटे हुए थे और वह भूखा भी था, भूख से वह कमजोर हो गया था. जैसे ही उसने अपनी माँ को देखा, उसने कहा, "माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ. जब मैं एक मील दूर था, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर गया और मैं मर गया होता, लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था,उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लीया, भूख के मारे मेरे प्राण निकल रहे थे.
मैंने उससे खाने को कुछ माँगा, उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि "मैं हर रोज यही खाता हूँ लेकिन आज मुझसे ज्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो ".
जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी माँ का चेहरा पिला पड़ गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाजे का सहारा लीया, उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह रोटी में जहर मिलाया था. अगर उसने वह रोटी आग में जला के नष्ट नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और अंजाम होता उसकी मौत और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट हो चूका था "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा."
" निष्कर्ष "
हमेशा अच्छा करो और अच्छा करने से अपने आप को कभी मत रोको फिर चाहे उसके लिए उस समय आपकी सराहना या प्रशंसा हो या न हो .


श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

मैं खुद मेरे सुख दुःख का कारण

विचार :-
कितना सुन्दर कहा है ना भगवान महावीर ने और कितने आसान शब्दों में समझाया की कैसे मैं खुद अपने सुख दुःख का कारण हू मै आपको समझता हू की उन्होंने कोन सी वो चार बातें कही जिनसे ये साफ़ हो जाता है की मैं खुद अपने दुःख सुख का कारण हू :-
वो कहते थे :-
१. मैं किसी को दुखी करने में समर्थ नहीं हू !
२. मै किसी को सुखी करने में समर्थ नहीं हू !
३. कोई मुझे दुखी नहीं कर सकता है !
४. कोई मुझे सुख नहीं दे सकता है !

अगर हम इन चारों बातों को मिलाकर देखे तो हमे सिर्फ एक बात पता चलेगी
की मैं खुद अपने सुख और दुःख का कारण हू...........!!!!!!!!

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

Friday 11 May 2012

फोटो (4)

फोटो (4) :-

डर से मत डरो

विचार :-
मैंने बहुत से लोगो को देखा की उनकी कुछ ना कुछ कमजोरी होती है जैसे वो किसी ना किसी चीज़ से या कुछ होने से बड़ा घबराते है या डरते है !
मैंने कही पढ़ा था की ऐसा कुछ पिछले कर्मो की वजह से होता है और ये उम्र भर रहता है लेकिन मेरा ऐसा मानना है की ऐसा नहीं होता है मै ये तो नहीं कह सकता की ऐसा क्यों होता है ये पिछला जन्म है या नहीं
लेकिन मै इतना जानता हू हम अगर चाहे तो इस डरो से मुक्ति पा सकते है बस जरुरी है तो इनसे सामना करने की क्योकि ये डर मेरे हिसाब से किसी चीज़ में नहीं होता बल्कि ये डर अपने खुद के अंदर होता है ! जब तक हम इससे पार नहीं पायेगे और लड़ेगे नहीं तब तक आप इनसे पार नहीं पा पाओगे !
मैंने खुद अपने एक डर से मुक्ति पायी है वो भी सिर्फ अपनी थोड़ी सी महनत और थोड़ी सी इच्छा शक्ति से इसीलिए कहता हू आप भी पा सकते है !

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

Thursday 10 May 2012

संगत की रंगत

विचार :-
सब लोग पता नहीं कैसी कैसी संगत कर लेते है ना की उन्हें खुद भी नहीं पता होता की एक दिन यही संगत उनका सर्वनाश कर देगी क्योकि धीरे धीरे वो उसे सर्वनाश के पथ पर ले जा रही है !
लेकिन संगत पर में एक बात और कहना चाहता हू की जितना जल्दी हम पर बुरी संगत का असर होता है उतना हम पर अच्छी संगत का असर नहीं हो पाता है लेकिन सच्चा इंसान वही है जो बुरी संगत में रह कर भी उनके अवगुणों को छोड कर उनके गुणों को अपना लेता है !
जिस प्रकार एक हंस पानी और दूध के मिश्रण में से भी दूध को ग्रहण कर सकता है उसी प्रकार महापुरुष भी अवगुणों की अपेक्षा गुणों को ही अपनाते है !

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

Tuesday 8 May 2012

गुरु की बात मुक्तक (16)

गुरु की बात मुक्तक (16)

गुरु  की  बात  की  जमाने  से  निराली  देखी,
उनके आशीर्वाद से फलती फूलती डाली देखी !
गुरु   शैतान   को   इंसान   बना   देते   है ,
गुरु  पत्थर  को   भी  भगवान  बना  देते   है !!


श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

धर्म

विचार :-
जो दुःख से, दुर्गति से, पापाचार से, पतन से, बचाकर आत्मा को ऊँचा उठता है वही मेरे विचार से धर्म है !
मेरे विचार से जो धर्म अन्य धर्मों को हानि पहुँचता है वह धर्म नहीं है और मेरे विचार से तो ऐसे धर्म को धर्म कहलाने का कोई हक नहीं है वह कुमार्ग है ! जो अन्य धर्मों का विरोध न करे, वास्तव में वही सत्य पराक्रम वाला धर्म है !
जो कार्य भगवत प्राप्ति के अनुकूल है, जिसके करने से आत्मा को संतुष्टि मिलती है, जिसके करने से आत्मो को संतुष्टि मिलती है, वाही धर्म है क्योकि मेरा मानना है धर्म को किसी पर जबरदस्ती नहीं थोपा जा सकता है ! अगर कोई इंसान धर्म में लगन ही नहीं लगा सकता तो उसके लिए धर्म का कोई महत्व नहीं फिर चाहे वो जैन धर्म हो या अन्य कोई, उसके लिए सब एक से ही है !

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

मौत का सच मुक्तक (15)

मौत का सच मुक्तक (15)

जिसने जन्म लिया है उसे मौत का कहर पाना होगा,
भले ही सूर्य अभिमान करे पर शाम को ढल जाना होगा !
कोन  सा  समागम  यहाँ  पर  स्थायी  हुवा  है  बंधू  रे,
जो आया है उसे एक ना एक दिन गुजर जाना ही होगा !!

श्रेणिक जैन 

Monday 7 May 2012

माँ बाप वही जो बच्चो को धर्म से जोड़े

विचार :-
मेरे विचार से सच्चे माता-पिता अपनी संतान को लाड-प्यार देते है, उन्हें संस्कार प्रदान करके, जीवन संग्राम का योद्दा बनाते है, शिक्षा दिलाकर भली भाँती योग्य बनाते है और अवसर आने पर अपनी सम्पति का उत्तराधिकारी भी बनाते है !
लेकिन मैं तो सिर्फ ये जानना चाहता हू की क्या इसी से माता पिता का कर्तव्य पूरा हो जाता है ? नहीं, मेरे विचार से माता पिता का सबसे जरुरी कर्तव्य बच्चो को धर्म मार्ग पर लगाना तो कही पीछे छुट ही गया ! मेरे विचार में यदि माता पिता अपनी संतान को धर्म मार्ग पर नहीं लगाते है , वे माता-पिता अपने बच्चो को भवसागर में भटकने के लिए छोड देते है !

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

photo (3)

photo (3)

देव दर्शन :- देव दर्शन ऐसे करे


माफ़ी


दोस्तों आपसे मै माफ़ी चाहुगा की अपना ब्लॉग दुबारा बंद कर रहा हू क्योकि मैंने देखा की कुछ लोगो मेरे लिखे पोस्ट को गलत इस्तेमाल कर रहे है !
और अगर आप शेयर करना ही चाहते है तो हर पोस्ट के नीचे आपको फसबूक या ट्विट्टर शेयर का आप्शन मिलेगा आप उस पर जा कर कर सकते है और कोई error भी नहीं देगा !
श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

Sunday 6 May 2012

घ्रणा व द्वेष पर विजय पाए

विचार :-
किसी के गलत व्यवहार को अपनी स्मृति में इतना ना पकडे की मन में उसके प्रति घ्रणा या द्वेष हो जाये और उसके प्रति अपने सारे व्यवहार ही बिगड जाए !
याद रखें की इससे उसकी अधिक हानि नहीं होगी लेकिन इस क्रोध और जलन से आपके मन पर हमेसा एक बोझ सा बना रहेगा और आप अपनी ही विशेष हानि कर लेगे, जिससे कभी ना कभी आपको पश्चाताप की अग्नि में भी जलना पड़ सकता है ! इससे तो अच्छा है की अपने घ्रणा-द्वेष पर जय ही पा ले !

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

दोषों को त्यागें और सद्गुणों को अपनाए

विचार :-
मेरा तो ये ही मानना है अगर हमे जन्म मिला है, इसीलिए जीवन जीना ही है, परन्तु ऐसा जीवन जीएँ की वह सफल और सार्थक हो जाये और मृत्यु के समय पछताना न पड़े ! ऐसा हो सकता है, अपने दोषों को त्यागने और सद्गुणों को अपनाने से !
हाँ ! यह अवश्य याद रखे की यह हम अपने ही उद्धार के लिए कर रहे है, तो मृत्यु तो अवश्य आएगी ! किन्तु सहज और समाधि- भाव से युक्त हो, ऐसा हो सकता है - जीवन में धर्म धारण करने से !

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

Friday 4 May 2012

लोगो की ज्यादा मत सुनो अपनी भी कुछ अकल लगाओ


विचार :-
*********सुनो सबकी करो मन की***********
एक मशहूर कथा है। एक बाप और उसका बेटा गधा बेचने निकले। पिता गधे पर सवार था, बेटा पैदल चल रहा था। थोडी दूर चलने पर उन्हें कुछ व्यक्ति मिले। एक व्यक्ति ने कहा- देखो तो यह कैसा पिता है, खुद तो गधे पर सवार है और बेटे को पैदल चला रहा है। उनकी बातें सुनकर पिता गधे से नीचे उतरा और बेटे को गधे पर बैठा दिया। कुछ और आगे चलने पर कुछ महिलायें मिली। उन्होंने कहा- कैसा बेटा है, बूढा बाप पैदल चल रहा है और खुद मजे से सवारी कर रहा है। उनकी बातें सुनकर पिता-पुत्र दोनों पैदल चलने लगे। थोडा आगे जाने पर कुछ और व्यक्ति मिले। वे बोले, दोनों कितने मूर्ख है, हट्टा-कट्टा गधा साथ में है, फिर भी सवारी करने के बजाय दोनों पैदल चल रहे है। उनकी बातें सुनकर दोनों गधे पर सवार हो गये। थोडा आगे आये तो कुछ और लोग मिले। वे बोले- दोनों कितने निर्दयी है। पहलवान जैसे होकर भी दोनों दुबले गधे की सवारी कर रहे है, ऐसा लगता है जैसे ये गधे को मारना चाहते हो। उनकी बातें सुनकर पिता-पुत्र दोनों गधे से उतर गये और दोनों ने मिलकर गधे को उठा लिया। जब वे बाजार पहुंचे तो लोग उन्हें देखकर हंसने लगे। सभी कहने लगे- कितने मूर्ख है, कहां तो उन्हें गधे की सवारी करना चाहिये थी और कहां ये दोनों गधे की सवारी बने हुये है। पिता-पुत्र ने विचार किया, बजाय लोगों की बातों पर ध्यान देने के, इस गधे से ही पूछा जाय, उसका क्या विचार है ? गधे ने मन में सोचा- जब मालिक या उसका उपयोग करने वाले भ्रम में हो, दूसरों के बहकावे में आकर जब वे अपने मूल उद्देश्य से भटक रहे हो तो लाभ मुझे ही मिलना है और गधे ने उत्तर दिया- मैं बडे मजे में हूँ।
श्रेणिक जैन आपसे सिर्फ इतना कहना चाहता है की दूसरों की बातों पर अधिक ध्यान न दे। अपने विवेक का उपयोग कर जो सही लगे, वही करे। कहा भी है- सबसे बडा रोग, क्या कहेंगे लोग ?”
श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

जीव और शरीर में अंतर

विचार :-
जीव शरीर से भिन्न होता है आत्मा रूपी जीव शरीर रूपी पुद्गल (आसान शब्दों में नशवर ) के अंदर सिर्फ वास करता है और कुछ वक़्त के बाद कर्मो के हिसाब से दूसरा शरीर धारण कर लेती है जैसे मनुष्य वस्त्र धारण करता है और उन्हें अगले दिन बदल लेता है ! लेकिन फिर भी हम सिर्फ शरीर के ही पीछे लगे है और इसे ही आत्मा समझ रहे है !
इसे कुछ इस तरह भी समझ सकते है एक मृत शरीर वही होता है उसके पास हाथ भी है लेकिन उन्हें हिला नहीं सकता, पैर भी है पर चल नहीं सकता, आख भी है लेकिन देख नही सकता, मुह भी है पर खा नहीं सकता और यह सब किसके कारण सिर्फ आत्मा रूपी जीव के कारण क्योकि जैसे ही वो शरीर रूपी वस्त्र से निकली पुरे शरीर ने काम करना अपने आप बंद कर दिया !
लेकिन बड़ी दुःख की बात है हम ये सब जानते है फिर भी अपनी आत्मा की कल्याण के लिए कुछ नहीं करते है और इन्ही भोग, विषय और कषायों में पड़े रहते है !
श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

जीव को समझना और संसार से पार उतरना

विचार :-
हम सब जीव है अर्थात हम सब की आत्मा जीव है और शरीर अजीव ! जीव अरूपी है, केवल इन्द्रियों से ही समझा, जाना और महसूस किया जा सकता है !
जीव हमेसा ही एक हवा की तरह है जिसकी शीतलता और मधुरता सिर्फ मह्सूस की जा सकती है वह ढूध में हमेसा मक्खन की तरह विधमान रहती है जिसने इस सच्चाई को जान लिया वही संसार सागर से पार उतर गया और जो इस शरीर के सुखो को ही सच्चा सुख मान लिया वह अनादी काल तक भोगो में भी और संसार की गतियो और अंसंख्य योनियों में ही भटकता रह गया !

श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा

Wednesday 2 May 2012

फोटो ( 2 )

फोटो ( 2 ) :-
श्रवणबेलगोला में नेमिनाथ भगवान और कुश्मद्नी देवी का मंदिर

Tuesday 1 May 2012

ध्यान और ज्ञान में मोह

विचार :-
आज में आप सब को ध्यान के बारे में बताने जा रहा हू !
सभी लोग ध्यान लगाते है लेकिन मेरे विचार से ध्यान लगते समय हमें कुछ महत्व पूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए !
१. सबसे पहले तो हमे ध्यान एक दम शुद्ध साफ़ धुले वस्त्र पहन के एक दम शुद्ध वातावरण में लगाना चाहिए !
२.आम तौर पर माना ये जाता है की सुबह का वक़्त सबसे शुभ होता है तो हमे सुबह जल्दी उठ के ब्रह्म मुहर्त में लगना चाहिए !
३.कभी भी ध्यान लगाते वक्त अपने आस पास के बारे में ना सोच कर बल्कि अपने अंतर मन में झाकने की कोशिश करनी चाहिए !
४.ध्यान के लिए एक जो सबसे जरुरी बात है वो ये की कभी भी ध्यान में मोह की बात न आवे, क्योकि ध्यान संसार से विरक्ति का सबसे उत्तम उपाय है और मोह हमें हमेसा संसार की तरफ धकेलता है !
क्योकि मेरा सिर्फ इतना मानना है की

शरीर मिला है सर्वज्ञ बनने के लिए
जीवन मिला है परमात्मा बनने के लिए
और
मनुष्य भाव मिला है मोक्ष जाने के लिए

तो दोस्तों श्रेणिक जैन आपसे सिर्फ यही कहना चाहता है की यदि मोक्ष ना भी जा सके तो उसके लिए दिल से कोशिश तो की जा सकती है !
श्रेणिक जैन
जय जिनेन्द्र देव की
ओम् नमः सबसे क्षमा सबको क्षमा
उत्तम क्षमा पाप क्षय पुण्य जमा